यथार्थ की बात

सूर्य लाए सुख की किरणें
या वर्षा लाए हर्ष की बौछार
आकाश से कौन पूछता है? ये तो यथार्थ की है बात।

पेड़ लगे हरा-भरा सुंदर
या नग्न आकृति लगे मनोहर
पेड़ से कौन पूछता है? ये तो यथार्थ की है बात।

नदी का पानी किसी भूमि तक करें सीमित
या तरल के प्रवाह पर अधिकार नहीं उचित
नदी से कौन पूछता है? ये तो यथार्थ की है बात।

दायित्वों के बंधन में हो समर्पण
या स्वयं की खोज में जीवन हो अर्पण
इंसान से कौन पूछता है? ये तो यथार्थ की है बात।

त्याग की मूरत की हो पूजा
या सम्मान की रक्षा का हो नारा
समाज से कौन पूछता है? ये तो यथार्थ की है बात।

यथार्थ की करें बात
या परम में करें विश्वास
ये प्रश्न किस से पूछें? ये तो यथार्थ की है बात।

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